Book Title: Prashnottarmala
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Vardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala

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Page 163
________________ प्रश्नोत्तररत्नमाळा भिन्न प्रकार से घेर कर उसकी अनेक प्रकार से विडम्बना करते हैं। "मैं और मेरा" इस मंत्र से मोह सब जगत को अंधा बना देता है और इसी मंत्र को सांसारिक जीव सुखबुद्धि से गिनते हैं, परन्तु इस से परिणाम में कितना अधिक दुःख होता है यह तो कोई विरले ही समझ सकते हैं। यदि अनन्तीवार जन्ममरण के फेरा फिरनेका यदि कोई भी सबल कारण हो तो वह राग, द्वेष और मोह ही है । इनका अंत (क्षय) हो जाने पर जन्ममरण सम्बन्धी सब दुःखों का सहज ही में अंत हो जाता है। यह बात शास्त्र से, गुरुगम से या जातिअनुभव से भलीभांति समझी जा सकती है। हमारी आत्मा जो प्रमादवश मोहादिक शत्रुओं के पाश में बन्ध गयी है उसको मुक्त करने की पूरी आवश्यकता है और चह उपेक्षा करने योग्य नही है । यदि हम को अपने शुद्ध स्वरूप का अर्थात् हमारी प्रात्मशक्ति का यथार्थ भान (ज्ञान) और यथार्थ श्रद्धान (प्रतीति) हो जाय तो हमको पूरा विश्वास हो जाता है कि हम हमारे कट्टर शत्रु के पाश में हमारी ही भूल से फंसे हुए हैं और अगर हम जाग्रत होकर हमारी भूल को सुधार कर उस शत्रु का सामना करें तो उसकी रहेमत नहीं कि वह हमको अधिक काल तक कष्ट पहुंचा सके। अर्थात् हमको आत्मजागृति की बड़ी आवश्यकता है । हमको हमारा जीवन बहुत उच्च प्रकार सुधार लेने की जरूरत हैं और ऐसा होने पर मोहादिक शत्रु अपने श्राप हम से डर कर भग जायेगे । ८०. सुख में मित्त सकल संसार, दुःख में मित्त नाम अधारा-पूर्व पुण्य के योग से जब सकल सुखसामग्रो 'प्राप्त हो जाती है तब तो बहुत से मित्र होने को उत्सुक रहते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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