________________
प्रश्नोत्तररत्नमाळा
से घेर कर मार दिया जाता है, उस प्रकार यदि इन नर. दैत्यों को, इनके बालबच्चों को, या इनके अन्य प्रिय सम्बधियों को मार दिया जाय तो उनको कितना बड़ा दुःख होगा । उतना ही दुःख या उससे भी अधिक दुःख उक्त पशुओं को निर्दयतापूर्वक मारने में होता है । इसकी दयाजनक अपील किसके पास आकर करें ? यह भारतभूमि दया के प्रताप से पहिले जितनी दयाई और पवित्र थी उतनी ही अब नीच संसर्ग से निर्दय और अपवित्र हो गई। केवल निर्दयता (निरपराधी प्राणियों पर बनता क्रूर शासन-घातकीपन) ही: यहां नियामक हैं । उसीको दूर करने के लिये भरसक पुरुषार्थ किया जाय तो पुनः यह आर्यभूमि जैसी की तैसी बन सकती है। ऐसा समझ कर अपनी मातृभूमि के उद्धार निमित्त प्रत्येक भारतवर्षी जन को हिंसा प्रतिबंध निमित्त दृढ़ प्रतिज्ञा करनी चाहिये। .
८३-सुखिया संतोषी जगमांही, जाको त्रिविध कामना नाहीं-जिसको किसी प्रकार की विषयवांछा नहीं ऐसे सुसाधु संतोषी संतजनों को ही संसार में सच्चे सुखी समझना चाहिये । विषयवांछा ही दुःखरूप है। जिसप्रकार क्षुधा, तृषा आदि दुःखरूप है और उसे शान्त करने को, अन्नपानादिक का उपचार किया जाता है। वह उपचार यदि लक्ष्यपूर्वक किया जाय तो वह दुःख उपशांत हो जाता है, परन्तु यदि उसमें अतिमात्रादिक विधिदोष हो जावे तो व्याधि प्रमुख से. ऊल्टी नई : उपाधि खड़ी हो जाती है
और उसको दूर करने के लिये अनेक प्रकार के उपचार करने पड़ते हैं, इसी प्रकार भिन्न भिन्न प्रकार की विषयवांछा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com