Book Title: Prashnottarmala
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Vardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala

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Page 164
________________ :: ६३ :: प्रश्नोत्तररत्नमाला हैं किन्तु जब किसी अन्तराय योग से सुखसामग्रो का वियोग होजाता है तब आपत्तिकाल में आकर खडे रहनेवाले, उसमें सहायता देनेवाले या उस आपदा से मुक्त करने को अपने भरसक प्रयत्न करनेवाले जो मित्र निकले वे ही सच्चे मित्र हैं । प्रश्नोत्तर रत्नमालिका में दिये गये इस प्रश्न के उत्तर पर मनन करना अत्यन्त आवश्यक है और वह यह है कि " जीव को भविष्य में भयंकर दुःख मिले ऐसे पाप से हमको अलग करे, सदुपदेश द्वारा पाप से होनेवाले दुःखों का विचार करा के हमको पापाचरण से अलग रक्खे और सन्मार्गगामी बनावे तथा सन्मार्ग में स्थित करे उसे ही अपना सच्चा मित्र समझना चाहिये।" जब दूसरे मित्र तो केवल इस भव में ही सहायभूत होते हैं तब उपरोक्त सन्मित्र पर लोक में भी सहायभूत होते हैं, अत: मोक्षार्थी जीव यदि मित्र करें तो ऐसे ही मित्र बनाने का लक्ष्य रक्खे । यतः कि मित्रं यनिवर्तयति पापात् । ८१. डरत पापथी पंडित सोई-जो पाप आचरण से डरता रहे और शुभाचरण में कदम उठावे वह ही पंडित है। प्रश्नोत्तरमालिका में ईस प्रश्न का ऐसा खुलासा है कि " कः पंडितो ? विवेकी अर्थात् पंडित कौन ? जिसके हृदय में विवेक प्रकट हुआ हो और उस विवेक के बल से जिसको जीव, अजीव, ( जड़, चैतन्य , पाप, आश्रव, संवर, बंध, मोक्ष और निर्जरारूप नव तत्त्व का यथार्थ निभय हो गया है, यथार्थ तत्त्वनिर्णय होने की जिस के हृदय में निश्चल तत्त्वश्रद्धा हुई है और जिस से भागामो काल में प्रात्मा को अनर्थ हो ऐसी पापवृत्ति से जो अत्यन्त डरता रहता है, तथा आत्मा को भविष्य में एकान्त हितकारी मार्ग में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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