Book Title: Prashnottarmala
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Vardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 158
________________ .: ५७ :: प्रश्नोत्तररत्नमाळा करते हुए भी बन्धन में फंस जाते है और संसारचक्र में मटकते रहते है, जब कि अन्तर लक्ष्य सहित सत् क्रिया करनेवाले शीघ्र ही संसार का अन्त कर मोक्षपद को प्राप्त कर सकते हैं । जिस प्रकार अंध पुरुष आँख के अभाव से गमन क्रिया करता हुआ भो इधरउधर चक्र लगाता रहता है परन्तु इच्छित स्थान पर नहीं पहुंच सकता इसी प्रकार अन्तरलक्ष्य रहित उपयोगशून्य धर्मकरणो करनेवाले के लिये भी समझना चाहिये। जिस को स्वपर का, जड़ चैतन्य का, गुण दोष का यथार्थ भान हो गया है वह अन्तर लक्ष्य से आत्महित साधने का उत्सुक शीघ्र ही शीघ्र सुख प्राप्त कर सकता है। अतः प्रत्येक मोक्षार्थी पुरुष को अन्तर लक्ष्य जगाना आवश्यक है। ७५-जो नहिं सुनत सिध्धान्त बखान, बधिर पुरुष जग में सो जान जो सर्वज्ञ-चीतरागप्रणीत सिद्धांत वचनों को श्रवण नहीं करता अथवा सुना अनसुना कर देता है अर्थात् जो प्राप्त वचन की उपेक्षा करता है अथवा कदाच दैववशात् उनके सुनने का अवसर प्राप्त हो गया तो उन तथा उनके रहस्यार्थ को हृदयंगम नहीं करता इस प्रकार जो सुने हुए को भी अनसुना कर देता है उसीको ज्ञानी पुरुष बधिर कहते हैं। क्यों कि आप्त वचनामृत आस्वाद लेने का प्रमूल्य अवसार मिलने पर भी तथा श्रवणेंद्रिय के उपस्थित होने पर भो वह भदभागी जन प्रमादवश उसका अपूर्व लाभ लेना भूल जाता हैं । जो बेवारे जन्म से ही बधिर होने से जिनवाणो नहीं सुन सकते उन दैवहत प्राणी का कोई अपराध नहीं हैं क्यों कि उनके हृदय में तो शास्त्रश्रवण करने की क्वचित् इच्छा हो सकती है, किन्तु जो सब सामग्री के उपस्थित होने पर भो उसका सदुपयोग कर श्रागमवाणी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194