________________
प्रश्नोतररत्नमाला
: : ३२:::
-
~
-
~
~
अपनी मर्यादा को निष्कलंक बनाये रखने का उद्योग करना चाहिये । कामविकार को वश में करनेवाले स्त्री-पुरुष का ही शीलरत्न जगमगा उठता है। शीलरत्न ही मनुष्यजाति का सच्चा भूषण है। संतोषी पुरुष ही शीलरत्न को प्राप्त कर सकते हैं । पूर्व काल में ऐसे अनेकों स्त्री-पुरुष रत्न थे कि जिनके पवित्र नाम का आज तक प्रभातकाल में स्मरण किया जाता है । ऐसे पवित्र स्त्रापुरुषों का अनुकरण कर मन, वचन और काया की शुद्धि से शीलरत्न की प्राप्ति
और अनुक्रम से विषयवासनाओं के निर्मूल करने का आरमार्थी सजनों को प्रयत्न करना चाहिये ।
३९. कायर काम आणा शिर धारे-विषय-विकार के वश होकर विवेकरत्न को खो कर जो स्वमर्यादा से विमुख हो जाते हैं वे ही कायर हैं। ऐसे कायर पुरुष स्वपर का जीवन नष्ट करते हैं। कामांध होकर खुद मर्यादा भ्रष्ट होते हैं और दूसरों को भी उन्मार्गगामी वना दोनों का अधःपात कराते हैं । कामांध माता को अपने पति एवं पुत्र का मान नहीं रहता, अपना कल्पित स्वार्थ सिद्ध करने के लिये वह उनके अमूल्य प्राणों की भी आहुती दे देने में नहीं हिचकचाती और भ्रष्ट से भ्रष्ट नीच नादान के साथ भी चली जाती है । इसी प्रकार कामांध पुत्र भी अपनी कुलमर्यादा को ताक में रख अपनी माता, भगिनी एवं पुत्री के साथ भी दुर्व्यवहार-दुष्टाचार करने से बाज नहीं आता । उसको कायर इसलिये कहा गया है कि वह मूर्ख अपने प्रवल दोषों के कारण उसको भविष्य में होनेवाले कष्टों से बचने के लिये किसी भा प्रकार का. उद्योग नहीं करता। ऐसे कामान्ध स्त्री-पुरुषों के लिये प्रबल काम विकार से इस संसार में भी अनेक प्रकार के अनर्थो का होना संभव है और भवान्तर में
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com