Book Title: Prashnottarmala
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Vardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala

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Page 135
________________ प्रश्नोत्तरत्ममाळा ::३४ :: कों उनके लिए अन्य जन्म में भी ऐसा उद्यम नहीं करनेसे फिर से मिलना मुश्किल हो जाता है । अतः उत्तम स्त्री पुरुषों को मोह, अज्ञान, अविवेक को छोड़कर जैसे हो सके वैसे सत्संग प्राप्त कर निर्मल ज्ञान और विवेक प्राप्त करने का अचुक प्रयत्न करना चाहिये कि जिससे यह मानव भव सफल हो सके। ४१. मानव जस घट आतमज्ञान-जिनके हृदय में विवेक जागृत है वे ही सच्चे मानव हैं, क्योंकि उन्हीं का जन्म सफल है । प्रात्मज्ञान द्वारा स्वपर का, अड़ चैतन्य का, त्याज्यात्यज्य का, कृत्याकृत्य का, हिताहित का, भक्ष्याभक्ष्य का, पेयापेय का तथा गुणदोष का निश्चय हो सकता है। इस प्रकार तत्व निश्चय होने से स्वपरहित की निशंकतया सिद्धि हो सकती है । और उससे चलायमान नहीं होने पर सुखपूर्वक साध्य की सिद्धि हो सकती है इससे प्रत्यक्ष है कि आत्महित की सिद्धि के लिये आत्मज्ञान कितना उपयोगी है । आत्मा में जो अनन्त शक्ति विद्यमान है उस पर पूरे पूरी श्रद्धा करानेवाला आत्मज्ञान ही है और ऐसी दृढ़ प्रात्म श्रद्धा होने पर हो स्व आत्मस्थित अनन्त शक्ति को व्यक्त (प्रकट) करने का निशंक तया प्रयत्न किया जा सकता है कि जिससे अनुक्रम से आत्मरमणता के योग से अविचल मोक्षसुख प्राप्त हो सक्ता है। ४२. दिव्यदृष्टिधारी जिन देव, करता तास इन्द्रादिक सेव-जिन्हों ने राग द्वेष एवं मोहादिक दोषों को दूर कर दिया है और जिनको परम शान्त दशा का अनुभव हो गया है अर्थात् जिन को परम दिव्यदृष्टि प्राप्त हो गई है कि जिससे इन्द्रादिक देवता भी उनकी सेवा करने को लालाShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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