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प्रश्नोत्तररत्नमाला
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चपला तिम चंचल धन धाम, अचल एक जग में प्रभु नाम । धर्म एक त्रिभुवन में सार, तन धन योवन सकल असार ॥२१ नरकद्वार नारी नित जाणों, तेथी राग हिये नवि आणो। अंतर लक्ष रहित ते अंध, जानत नहि मोक्ष अरु बंध ॥२२ जे नवि सुणत सिद्धान्त वखाण, बधिर पुरुष जगमें ते जाण । अवसर उचित बोली नवि जाणे, ताकुं ज्ञानी एक वखाणे॥२३ सकल जगत जननी हे दया, करत सहु प्राणी की माया । पालन करत पिता ते कहीए, तेनो धर्म चित्त सद्दहिये ।। २४॥
५८. नीच सोई परद्रोह विचारे पर जीवन का अनिष्ट कैसे हों, वह कैसे बेहाल हो, वह सुख से भ्रष्ट कैसे हो, उस पर आपत्ति किस प्रकार आवें इस प्रकार की विचारधारा गंथ कर केवल दुर्ध्यान में हो अपना समय निर्गमन करते रहते हैं। सोते-ऊठते, जाते-पाते केवल ऐसा ही बुरा चिंतवन करते रहते हैं और दूसरों का अनिष्ट करने का अवसर ढूंढा करते हैं, मोका मिलने पर नहीं चकते, दूसरों को भी ऐसी ही बुरी सलाह देकर अपना कल्पित स्वार्थ साधने की कोशिश करते हैं, एक क्षण भो शुभ विचार के लिये अव. काश नहीं देते, उस परद्रोहकारी को सचमुच नीच पापी समझना । यद्यपि दूसरों के प्राल पुण्ययोग से कोई दुष्ट उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता, यहां तक कि उसका बाल भी बांका नही कर सकता, तिस पर दुष्ट जन तो अपनी दुष्ट वृत्ति से अवश्य नीवगति गामी होता हैं । परद्रोहकारी दिनरात दुष्ट वृत्ति से दुःखी ही रहता हैं, जब कि सब का भला चाहनेवाला सजन तो सदा सुख में हो मन रहता है।
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