Book Title: Prashnottarmala
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Vardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala

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Page 144
________________ प्रश्नोत्तररत्नमाळा जाते है और इसीसे वे अरहटघटिका. न्याय से भवचक्र में भटकते ही रहते हैं। ५४. छति शक्ति गोपे ते चोर-उक्त संयम गुण को प्राप्त करने और असंयम से निवृत्त होने में जो अपनी शक्ति का सदुपयोग नहीं करते एवं उसका गेरउपयोग करते हैं वे ही सच्चे चोर हैं। लोकप्रसिद्ध चोर दूसरों को अंधेरे में घेर कर पर द्रव्य संहार करते हैं और वे गुप्तस्थल में छिर जाते हैं परन्तु ये श्रात्म चोर तो अपने ही अन्तःकरण को घेर कर आत्मसाधन के अमूल्य अवकाश से अपने आप को ही वंचित रखकर अजान द्वारा स्वयं स्वयंका ही सर्वस्व खो देते हैं और उस अमूल्य अवसर के हाथ से निकल जाने पर पुनः महापरिश्रम करने पर भी वह अपनी भूल को नहीं सुधार सकता उसका नाम प्रात्मवंचकता है। ५५. शिवसाधक ते साधकिशोर-प्रमाद का त्याग कर अप्रमत्तरूप से सिंह के सरश शूरवीर बन संयम आचरण द्वारा जो मोक्षमार्ग की सिद्धि प्राप्त करते हैं वे ही सच्चे साधु कहलाते हैं । शेष साधुवेष धारण कर पवित्र संयमाचरण का पालन करने के बदले जो असंयम द्वारा वेष विडंबना करते हैं वे साधु नाम को कलंकित करते हैं । उत्तम पुरुष जो जो प्रतिझा करते हैं उसका प्रथम से ही पुरा विचार कर जिसका सुखपूर्वक निर्वाह हो सके ऐसी हो उसी प्रतिज्ञा को स्वयं अंगीकृत करते हैं, और उसका प्राणान्त तक पालन करते हैं, उसमें कदापि बाधा नहीं आने देते, इसी प्रकार सर्व मुमुक्षु जीवों को संयमपालनरूप जो प्रतिज्ञा खुदने संघ समक्ष अंगीकृत की है उसका विवेकपूर्वक जीवन पर्यंत निर्वाह करना, उसमें प्रमाद नहीं करना, उन महाशयों का मुख्य - कर्तव्य है और इसी में स्वपर के हित का समावेश होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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