________________
: : ३१ : :
प्रश्नोत्तररत्न माळा
कर चुके हैं वे तो कभी भी अभिमान नहीं करते, अपितु अभिमान छोड़कर नम्रता गुण की प्राप्ति से हो पूर्णता प्राप्त होती है और जो अपूर्ण होने पर भी अभिमान - मिथ्या अभिमान करते हैं उनको पूर्णता प्राप्त हो ही नहीं सकती, अपितु थोड़ी बहुत प्राप्त की हुई पूर्णता भी नष्ट हो जाती है। अतः सब से श्रेष्ठ बात यह है कि जिस जिस प्रकार गुण को वृद्धि होती जाय वैसे ही वैसे नम्रता की भी वृद्धि होनी चाहिये । जिस जिस प्रकार नम्रता में वृद्धि होगी वैसे ही गुणवृद्धि में गति शीघ्रतया होगी और जैसे नम्रता में त्रुटो होगी वैसा हो गुणवृद्धि में भी कमी होती जायगी “ लघुता तह प्रभुता और " प्रभुता से प्रभु दूर " ऐसा नियम है । इसीसे रावण और दुर्योधन जसों का भी बेहाल हुआ और रामचन्द्र तथा पांडवों का अभ्युदय हुआ ।
"
66
३८. सूरवीर जो कन्द्रप वारे-जो कामविकार का निवारण करे और विषयवासनाओं को निर्मल करे वे ही सचमुच शूरवीर अर्थात् बहादुर हैं और जो कामविकार के वशीभूत होकर स्वपरहित से वंचित रहता है वह ही डरपोक या कायर है । लखों पुरुषों का सामना कर रण में झझनेवाले अनेकों सुभट होते हैं, परन्तु एक अबळा - स्त्री के नेत्र कटाक्ष को वे भो सहन नहीं कर सकते, स्त्री के सामने केवल कायर बन जाते हैं । अपितु कामविकार से अंधे होकर अंधे बन जाते हैं। अपनी मर्यादा से मुंह मोड़ कर जहां तहां भटकते रहते हैं और अनेक स्थानों पर मार-भर्त्सना एत्र अपमान के शिकार बनते हैं तथा अन्त में मलिन वासना से मर कर अन्त नीच गति में उत्पन्न होते हैं । अतः प्रत्येक स्त्री-पुरुष को कामविकार को बरा में कर
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com