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प्रश्नोत्तररत्नमाळा
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के लिये महा आशीर्वादरूप हैं, और वे परम पवित्र मार्ग का उल्लंघन कर केवल आपमति से स्वच्छंदपन से फिरने - वाले यति तो केवल जगत में श्रापरूप ही हैं ।
३६. समता रस सायर सो संत-राग, द्वेष और मोहजन्य ममतादिक विचारों को छोड़कर जो सदा समता रस में ही लोन रहते हैं वे ही सचमुच संत पुरुष हैं ऐसे समतावंत साधु सचमुच विश्ववंद्य हैं । संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जिस को उनकी उपमा दी जा सके, अतः ऐसे समता वंत संत साधु जन उपमानीत कहलाते हैं। ज्ञानसार में कहा है कि " जिसका समता रस स्वयंभूरमण समुद्र की स्पर्धा करता है और निरंतर वृद्धि प्राप्त करता जाता है ऐसे मुनीश्वरों की उपमा योग्य इस चराचर जगत में कोई भी वस्तु दृष्टिगोचर नहीं होती " तिस पर भो जो चन्द्र, सूर्य, सायर, भारंड प्रमुख पदार्थों की जो उपमा दी जाती है उसको एकदेशीय समझना चाहिये ।।
३७. तजत मान ते पुरुष महन्त जो मान मनुष्यो में सामान्य नियमानुसार दृष्टिगोचर होता है और जिसके कारण जीवों को बहुधा अनेकों कष्टों का सामना करना पड़ता है तथा जिसके परिणामस्वरूप नरकादि दुर्गात में भी जाना पड़ता है उस दुःखदायी मान-अभिमान को जो. छोड़ देता है वह हो बड़ा महन्त पुरुष है । अभिमान त्याग का उपाय नम्रता है । जब तक हम पूर्णता प्राप्त न करलें तब तक अभिमान क्यों कर करे ? तथा पूर्णता प्राप्त कर लेनेवाले को भी अभिमान करने की क्या आवश्यकता है ? अर्थात् पूर्ण एवं अपूर्ण के अभिमान करने के लिये कोई कारण ही नहीं रहता । तिस पर भी जो तत्व से पूर्णता प्राप्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com