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प्रश्नोत्तररत्नमाळा जिससे उनको अपने लिये मोक्षमार्ग बहुत सरल हो जायगा ॥ ७ ॥ सर्वप्रथम ग्रन्थकार प्रश्न समुदाय का वर्णन करते हैं
प्रश्न देव धरम अरु गुरु कहाँ, सुख दुःख ज्ञान अज्ञान । ध्यान ध्येय ध्याता कहाँ, कहाँ मान अपमान ॥१॥ जीव अजीव कहो कहाँ, पुण्य पाप कहाँ होय । आश्रव संवर निर्जरा, बंध मोक्ष कहाँ दोय ॥२॥ हेय ज्ञेय पुनि है कहाँ, उपादेय कहाँ होय । बोध अबोध विवेक कहाँ, पुनि अविवेक समोय ॥३॥ कौन चतुर मूरख कवण, राव रंक गुणवंत । जोगी जति कहो जीके, को जग संत महंत ॥४॥ शूरवीर कायर कवण, को पशु मानव देव । ब्राह्मण क्षत्रिय वैश को, कहो शूद्र कहा भेव ॥५॥ कहाँ अथिर थिर है कहाँ, छिल्लर कहाँ अगाध । तप जप संजम है कहाँ, कवण चोर को साध ॥६॥ अति दुर्जय जगमें कहाँ, अधिक कपट कहाँ होय । नीच ऊंच उत्तम कहाँ, कहो कृपा कर सोय ॥७॥ अति प्रचंड अग्नि कहाँ, को दूरदम मातंग । विषवेली जग में कहाँ, सायर प्रबल तुरंग ॥८॥
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