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प्रश्नोत्तररत्नमाळा
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इत्यादिक गुणयुक्त जे, जंगम तीरथ जाण । ते मुनिवर प्रणमुं सदा, अधिक प्रेम मन आण ॥ ५ ॥ लाख बात की एक बात, प्रश्न प्रश्न में जाण । एक शत चौदे प्रश्न को, ऊत्तर कहुं वखाण ॥६॥ प्रश्नमाल ए कंठ में, जे धारत नर नार । तास हिये अति उपजे, सार विवेक विचार ॥ ७ ॥
विवेचन-जिनके हृदय में अनन्त ज्ञान, दर्शनरूप ज्योति का प्रकाश हुआ है, जिनको राग,द्वेष, मोहादिक सर्व दोषमात्र का सम्पूर्ण क्षय करने से अनन्तचारित्र-स्थिरता गुण प्रकट हुआ है, और जिनके सदृश सम्पूर्ण संसार में दुसरा कोई व्यक्ति दृष्टिगोचर नहीं होता ऐसे निरुपम श्री अरिहंत भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ। तथा कर्म-कलंक से सम्पूर्णतया मुक्त होने अर्थात् दैहिक सम्पूर्ण उपाधि से रहित होने से हमेशा के लिये सहज स्वाभाविक आत्मस्वरूप को संप्राप्त हुए और आत्मार्थी भव्यजनों को ऐसा ही स्वभाविक सुख प्राप्त करानेवाले ऐसे सिद्ध परमात्मा को मैं प्रणाम करता हुँ ॥१॥
__ जो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और असंगतारूप पांच महाव्रतों का सेवन करते हैं, ज्ञानावार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचाररूप पांच आचारों का पालन करते हैं, महासागर के सदृश अगाध समतारस से परिपूर्ण हैं, तथा साधु योग्य सत्तावीश गुणों को सदैव धारण करते हैं; ईर्या, भाषादिक पांच समिति और मन, वचन, काया की तीन गुप्तियों का तथा चरणसित्तरी: ( मूल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com