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प्रश्नोत्तररत्न माळा
बेनसीब ही रखे ऐसो अयोग्यता ग्रह ही जगत में सब से बड़ा अपमान समझना चाहिये: । क्योंकि इसीसे जीत्र जहाँ तहाँ जन्म, जरा और मरण सम्बन्धो अनन्त दावानल में जला हो करता है ।
१३. चेतन लक्षण कहिये जीव-चेतना यह जीव का सामान्य लक्षण है | चेतना अर्थात् चैतन्य सजीवनपन । शेष ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग ये जीव के विशेष लक्षण हैं। ऐसे लक्षण जीव में हा मिल सकते हैं।
१४. रहित चेतन जान अजीव - जिसमें पूर्वोक्त चेतनाचैतन्य सजीवनता विद्यमान नहीं होती वह अजीव अथवा निर्जीव कहलाता है । निर्जीव वस्तु में सामान्य लक्षण चैतन्य ही नहीं तो विशेष लक्षण ज्ञानादिक तो हो ही कैसे ? इस प्रकार जीव और वस्तु का निर्णय करना सहल है ।
१५. परउपकार पुण्य करी जान - जिससे अन्य जीव का हित हो वैसे मन, वचन और काया का सदुपयोग करना, अन्य जात्रों को शाता-समाधि उत्पन्न हो ऐसे कार्य परमार्थ दृष्टि से करना, कराना या अनुमोदन करना, कभी स्वप्न में भी किसी जीव को पीडा - अशाता - असमाधि-अहित ऐसा मन से भी इच्छा नहीं करते हुए सदा सर्वदा सबों का एकान्त हित- वात्सल्य हो ऐसा ही मन से विचारना, ऐसा ही वचन बोलना और ऐसा ही काया से प्रवर्तन करना, हो ऐसे पवित्र मार्ग से कदापि विचलित न हो इसके लिये सावधान रहना चाहिये | ऐसे हितकारी कार्य करके उसके बदले की इच्छा नहीं करनी चाहिये । यश कीर्त्ति प्रमुख का लोभ न कर स्वकर्त्तव्य समझ कर सब पर समदृष्टि रखकर अर्थात् रागद्वेत्र से होनेवाली विषमता को छोड़ कर और मैत्रो प्रमुख
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