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प्रश्नोत्तररत्नमाळा
गया है ? वह किस प्रकार प्रकट हो सकती है? उसमें अन्तरायभूत कौन है ? वह अन्तराय क्यों कर दूर हो सकता है ? उसके साधन कौन कौनसे हैं ? उन साधनों का किस प्रकार उपयोग करना चाहिये ? यह मनुष्यभव कितना अमूल्य है ? इसको किस प्रकार निरर्थक खो रहे हैं इत्यादि आत्मा सम्बन्धी चितवन के साथ साथ अब विशेषतया जागृत होना बहुत जरूरी है। जिसको आत्मा का अनुभव हुआ है ऐसे संतजनों की सेवा भक्ति बहुमान करना बहुत ही आवश्यक है । स्वहित कार्य में गफलत करने से जीव को अबतक अनेको यातनाएं सहनी पडी है और भविष्य में भी सहनी पडेगी, अतः अब और अधिक स्वहित साधन की उपेक्षा न कर जैसे बने वैसे जल्दी उत्साहपूर्वक एवं प्रेम से सत्संगति कर स्वहित साधन का पूरा लक्ष्य रखना चाहिये। इसमें गफलत करने से बड़े भारी दुःख की संभावना है, क्योंकि स्वहित साधने के लिये अन्तर लक्ष्यरूप सुविवेक प्रकट होना जीव के लिये अत्यन्त दुष्कर है।
२८. तास विमुख जड़ता अविवेक-उक्त प्रकार का आत्मलक्ष्य छोड़ कर केवल जड़ ऐसी पौद्गलिक वस्तुओं में ही प्रोति रखना, उसी में निमग्न हो जाना, इस के उपरान्त दूसरा कोई कर्त्तव्य अवशिष्ट (शेष) न जानना, खानपान, ऐश-आराम करना यह ही इस दुनियां में सार वस्तु है और इसी को प्राप्त करने का अहर्निश उद्यम करना ही कर्तव्य है । ऐसे ऐकान्त अज्ञान गर्भित कुविचार ही अविवेक है । ऐसे अविवेक से ही मिथ्यावासना की वृद्धि होती है और इसीसे जीव को संसारचक्र में भ्रमण करना पड़ता है। जन्म, जरा, मृत्यु, आधि-व्याधि-उपाधि और संयोग-वियोग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com