________________
उदाहरणके तौर पर 'क्षेत्रज्ञ' शब्द के विविध प्राकृत रूपेकिो लेकर तथा आचारांगके उपोदातरूप प्रथम वाक्यका लेकर जो चर्चा भाषाकी दृष्टिसे की गयी है वह यह दिखाने के लिए है कि जो अभी तक मुद्रण हुआ है वह भाषा विज्ञान की हरिसे कितना अधूरा है ।
डॉ. चन्द्रका यह सर्व प्रथम प्रयत्न प्रशंसाके योग्य है। इतना ही नहीं किन्तु जैनागमके संपादनकी प्रकियाको नयी दिशाका बोध देने वाला भी है और जो आगमसंपादनमें रस ले रहे हैं वे सभी डॉ. चन्द्रके आभारी रहेंगे ।
दलसुख मालवणिया
८ ओपेरा सोसायटी
अहमदावाद-७ ता : ११-१२-९१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org