Book Title: Prachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 132
________________ विषय रवी 4 . 56 5 ho (न), हेत्वर्थक कृदन्तः का प्राचीन प्रत्यय - त्तर (प) एक वैदिक क्रियाविशेषण (१) अमुक धातुओं के प्राचीन रूपों के प्रयोग : भू, ब, प्राप् , कृ अध्याय-३ 1 अध मागधी भाषा में अशोककालीन भाषा के लक्षण (क) यथा = अहा और यावत् = आव (ख) मति = मुति (ग) चतुथी एक वचन की विभक्ति - आये (घ) वर्तमान कृदन्त का प्रत्यय - मीन (च) संबधक भूतकृदन्त का प्रत्यय - त्तु 2 अधमागधी भाषा में भारत के पूर्वी क्षेत्र (अशोक कालीन) के लक्षण (छ) र = ल (ज) क= ग (झ) सामत शब्द का प्रयोग समीप के अर्थ में (ट) यकारयुक्त संयुक्त व्यंजनों में स्वरभक्ति ठ) -अः = ए के प्रयोग पुरस् = पुरे, अधस् = अधे, हेहा, नामतः = नामते, नः = णे (अस्माकम् ) (ड) अकस्मात् शब्द का प्रयोग (ढ) कृ धातु के सं. भू. कृ. कट्ट का प्रयोग अध्याय-४ आचार्य हेमजन्द्र द्वारा (1) आष की विशेषताओं का उल्लेख (2) अमुक विशेषताओं का उल्लेख ही नहीं अध्याय-५ प्राचीन अर्धमागधी प्राकृत की मुख्य लाक्षणिकताएँ अध्याय-६ क्षेत्रज्ञ शब्द के विविध प्राकृत रूपों की चर्चा 61 64 66 71 77 80 85 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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