Book Title: Prachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 135
________________ ११२ 18 सुत्तनिपातो. पी. वी. बापट, पूना 1924. 19. सूयगड सुत्त, मुनि जम्बूविजय, म. जै. वि., बम्बई, 1978 20. सूत्रकृतांगसूत्र, भाग-1, मुनि पुण्यविजयजी, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, 1975 21. Comparative Grammar of the Prakrit Languages by R. Pischel, Motilal Banarasidas, Varanasi, 1965 Historical Grammar of Inscriptional Prakrits, M. A Mehendale, Poona, 1948 23. Ludwig Alsdorf : Kleine Schrifen, Wiesbaden, 1974 24. Pali Literature and Language, W Geiger (B. Ghosh, English), 1968 25. The Prakrit Grammarians, Nitti Dolchi, 1972 हमारे प्रकाशन 1. भारतीय भाषाओं के विकास और साहित्य की समृद्धि में श्रमणों का महत्त्वपूर्ण योगदान, के. आर. चन्द्र, 1979 22 प्राचीन अर्धमागधी की खोज में/ के आर. चन्द्र 2 प्राकृत-हिन्दी कोश, के आर. चन्द्र, 1987 ( पाइयसमण्णवो की किंचित् परिवर्तित आवृत्ति ) 3. English Translation of Kouhala's Lilāvai - Kahā, Prof. ST. Nimkar, 1988 4. नम्मयासुंदरी कहा ( श्री महेन्द्रसूरिकृत), हिन्दी अनुवाद सहित, के. आर. चन्द्र, 1989 5. आरामशोभा रासमाला (गुजराती), प्रो. जयंत कोठारी, 1989 6 जैनागम स्वाध्याय, पं. दलसुखभाई मानवणिया 'गुजराती), 1991 100-00 [ग्रन्थ खरीदने के लिए संपर्क करें मुख्य वितरक : पार्श्व प्रकाशन, निशा पोल नाका, जंवरी वाड, रिलीफ रोड, अहमदाबाद, 380001] Jain Education International रू.120-00 For Private & Personal Use Only रु. 30-00 €. 40-00 रु.90-00 www.jainelibrary.org

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