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प्राचीन अर्धमागधी की खोज में/के.आर. चन्द्र अर्वाचीन प्रतों में उपलब्ध प्राचीन पाठ अस्वीकृत मूल ग्रंथ में परवर्ती पाठ जबकि वृत्ति में प्राचीन पाठ कभी प्राचीन तो कभी परवर्ती पाठ
तत्कालीन लोक प्रचलित रूप छोड़ दिया जाना (द) उत्तरवर्ती सम्पादकों द्वारा पूर्ववती' संस्करणों से प्राचीन शब्द रूप
अस्वीकृत
आचारांग, सूत्रकृतांग (ण) मूल उपदेशक की भाषा परवती काल की जबकि उसके संग्रहकर्ता की
भाषा में प्राचीनता
उपस हार •अध्याय-२ (क) मध्यवती व्यजनों के लोप के बदले में घोषीकरण
क-ग, ख-घ, चम्ब, त-द. थध (ख) अमुक अमुक स युक्त व्यजनों के समीकरण के बदले में स्वरभक्ति (ग। आत्मन् के लिए अत्ता के प्रयोग (घ) दन्त्य नकारयुक्त असामान्य संयुक्त व्यजन (च) प्रथम पुरूष सर्वनाम के प्रथमा बहुवचन का रूप 'वय' (छ) व्यंजनांत ज्ञब्दों के तृतीया एक वचन के कुछ प्राचीन प्रयोग (ज) तृ. ब. व. की विभक्ति - भि वाले रूप (झ) चतुथी' ए ब. के - आय विभक्ति वाले रूप (ट) क्रियाविशेषण के रूप में पंचमी एक वचन के प्राचीन प्रयोग (ठ: वर्तमान कृदन्त के और व्यजनांत शब्दों के पठी एक क्चन के रूप (ड) सप्तमी एक वचन को प्राचीन विभक्ति - म्हि, - म्हि और - स्सि 41 (ढ) कुछ और प्राचीन रूप (ण) पालि के समान स्त्रीलिंगी एक वचन की विभक्तियाँ - य, - या और
अशोक के शिलालेखों के समान - ये विभक्ति (त) भूत काल के प्राचीन प्रत्ययों वाले प्रयोग (थ) विधिलिंग के लिए प्राचीन प्रत्ययों वाले प्रयोग *(द) संबंधक भूतकृदन्त के प्राचीन रूप (ध) वर्तमान कृदन्त के प्राचीन प्रयोग
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