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प्राचीन अर्धमागधी की खोज में के.आर.चन्द्र
(ब) सूत्रकृतांग
जै. वि. भारती संस्करण
स्वीकृत पाठ महीए मझम्मि (1.6.13) विसोहइत्ता (16.17)
| पाठान्तर महीय मज्झ म्मि (ख प्रत एवं चर्णी ) विसोधइत्ता (चर्णी
म. जै. वि. संस्करण संबोही (1.2.1.1)
संबोधी । चूर्णी) अह (14.2.16)
अध ( चूर्णी) कयपुव्वं (14.2.18)
कडपुव्वं (चर्णी ) गिहाइं (1.4.1.17)
गिहाणि ( चर्णी) एयाई भयाई
एताणि भयाणि (चूर्णी) आइट्ठो (1.4 1.19)
आइष्टे (पु. प्रत) कडेहिं गाहती (1.2.1.4)1
कडेभि गाहए (चूर्णी)
(स) उत्तराध्ययन (म. जै. वि. संस्करण)
आया (13.10) । अत्ता (चूर्णी का पाठ)
(5) प्राचीन शब्द-रूपवाले पाठों को अस्वीकार करने की पद्धति का अन्य प्रकार से प्रस्तुती--करण
। यहाँ पर 'थीभि' (स्त्रीभिः) आचा. 1.2.5.84 के प्रयोग का उल्लेख करने योग्य है जो आचारांग के सभी संस्करणों में मिलता है। यह प्राचीन प्रयोग कैसे बच गया यही आश्चर्य है । इस दृष्टि से 'कडेभि' पाठ स्वीकार करने योग्य है ।
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