Book Title: Prachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 109
________________ ८६ प्राचीन अर्धमागधी की खोज में/ के. आर चन्द्र० ( 4 ) महावीर जैन विद्यालय के संस्करण में पाठान्तरों की संख्या 5 है - 1. खित्तण्ण, 2. खेदन्न, 3. खेदण्ण, 4. खेयन्न और 5. खेअन्न । इस संस्करण में 'खेत्तन्न' पाठान्तर का कहीं पर भी उल्लेख नहीं होना एक आश्चर्य की बात है, जबकि शुक्रिंग महोदय को ताडपत्र की एक प्रत में और चूर्णि में खेत्तन्न पाठ मिला है । स. क्षेत्रज्ञ शब्द के लिए प्राकृत में (ध्वनि - परिवर्तन वाले) जो अलग अलग शब्द अपनाये गये हैं वे इस प्रकार हैं (1) खेयन्न, खेयण्ण, खेतण्ण, खेत्तण्ण इन चारों पाठों को विभिन्न संपादकों ने समान रूप से नहीं अपनाया है । (2) उपरोक्त संस्करणों के पाठान्तरों में जो रूप मिलते हैं वे इस प्रकार हैं- खेत्तन्न और ऊपर ब ( 4 ) में दिये गये पाँच रूप खित्तण्ण, खेदन्न, खेदण्ण, खेयन्न और अन्न । (3) अर्थात् कुल नौ रूप मिलते हैं जो निम्न प्रकार से चार विभागों में रखे जा सकते हैं : [ अ ] खेयन्न, खेअन्न (न्न); ज्ञ = न्न [ब] खेतण्ण, खेयण्ण (ण्ण ); ज्ञ = ण्ण [स] खेत्तन्न, खेत्तण्ण, खित्तण्ण (त्त); त्र = त [द] खेदन्न, खेदण्ण (द); त्र = त = द [क] अमुक रूपों में त = द = अ = य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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