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६. 'क्षत्रज्ञ' शब्द का अर्धमागधी रूप* __ आचारांग' के प्रथम श्रुतस्कंध में क्षेत्रज्ञ' शब्द के प्राकृत रूपों का 16 बार प्रयोग हुआ है [सूत्र सं. 32 (47; 79 (1); (88) (1). 104 (1); 109 (5); 132 (1), 176 (1); 209 (1); 210 (1)] जो विविध संस्करणों में इस प्रकार उपलब्ध हो रहे हैं :अ. (1) शुबिंग महोदय के संस्करण में मात्र खेयन्न । (2) आगमोदय समिति के संस्करण में खेयन्न 9 बार और
खेयण्ण 7 बार। (3) जैन विश्व भारती के संस्करण में खेयन्न 1 बार और खेयण्ण
15 बार। (4) महावीर जैन विद्यालय के संस्करण में खेयण्ण 2 बार,
खेतण्ण 6 बार और खेत्तण्ण 8 बार । ब. पाठान्तर - (1) शुबिंग महोदय के संस्करण में सिर्फ एक ही पाठान्तर है
खेत्तन्न (चूर्णि से 3 बार और 'जी' संज्ञक प्रत से 5
बार ) । (2) आगमोदय समिति के संस्करण में कोई पाठान्तर नहीं है । (3) जैन विश्व-भारती के संस्करण में दो पाठान्तर मिलते हैं
खेत्तन्न ( 'च' संज्ञक प्रत से ) और खेत्तण्ण (चूर्णि से) । 'श्रमण', पा. वि. शेो. स. वारणसी, अक्टू-दिस, 1980 में प्रकाशित यह
लेख साभार इधर प्रस्तुत किया गया है । 1. महावीर जैन विद्यालय सस्करण, स. मुनि जंबूविजय, ई० सन् 1977
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