Book Title: Prachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 117
________________ ७. आचारांग के उपोद्घात के वाक्य का पाठ पू. गणधर श्री सुधर्मास्वामीने भगवान महावीर के मुख से जो उपदेश सुने उन्हें अपने शिष्य जम्बूस्वामी को हस्तान्तरित करते (मौखिक परम्परा से) हुए वे फरमाते हैं (आचारांग, प्रथम श्रुत-स्कंध, प्रथम अध्ययन, प्रथम उद्देशक का प्रारंभ) :- 'सुयं मे आउस ! तेणं (तेणी का पाठान्तर भी) भगवया एवमक्खाय....." - इस उपोद्घात के वाक्यमें संदर्भ की दृष्टि से दो शब्द 'आउस' और 'तेणं' तथा भाषाकीय दृष्टि से तीन शब्द 'सुय' 'भगवया' और 'अक्खायं' पर विचार किया जा सकता है । . यदि यह वाक्य कथनकी एक प्रणाली प्रस्थापित करने के लिए सुधर्मा स्वामी के बाद बहुत लम्बे अर्से के पश्चात् जोड़ा गया हो तब तो इसके बारेमें कुछ भी कहने को नहीं रह जाता परंतु आगमों की प्रथम वाचना (यानि चौथी शताब्दी ई. स. पूर्व ) से ही यदि . यह वाक्य विद्यमान था तब तो अवश्य विचारणीय बन जाता है। . सुधर्मा स्वामी , भ. महावीर के शिष्य थे और जम्बूस्वामी सुधर्मा स्वामी के । भ. महावीर सुधर्मास्वामी के लिए समय की दृष्टि से बहुत दूर के उपदेशक गुरु नहीं थे इसलिए उन्हें भ. . महावीर के लिए ऐसा प्रयोग करना , पड़े कि उस भगवान महावीर ने (तेणं भगवया) ऐसा कहा । अन्तरालके वर्षों की अवधि अधिक होती और कोई घटना बहुत पुरानी होती तब तो ऐसा प्रयोग उचित लाता 1. इस दृष्टि से विचार करने के लिए प्रो. एम. ए. ढाकी, बनारस का मैं आभारी हूँ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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