Book Title: Prachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 124
________________ मूल अधमागधी को पुनः रचना : एक प्रयत्न १.१ खपन्नाह ___ संस्कृत शु. आगमो. जैविभा. म.जै.वि. 1. नित्य = नितिए निइए णिइए णितिए 2. समेत्य = समेच्च समिच्च समिच्च समेच्च 3. लोकम् = लोग लोयं लोय लोयं 4. क्षेत्रज्ञैः = खेयन्नेहि खेयण्णेहिं खेयण्णेहि खेतण्णेहि 5. प्रवेदितः = पवेइए पवेइए पवेइए पवेदिते स्पष्ट है कि अपने अपने भाषाकीय सिद्धान्तों की मान्यता के अनुसार (न कि प्राकृत भाषा के ऐतिहासिक विकास की दृष्टि से और न ही समय, क्षेत्र और उपदेशक की वाणी के स्वरूप को ध्यान में लेकर) और प्राकृत व्याकरणकारों के नियमों के प्रभाव में आकर (जो न तो काल की दृष्टि से ऐतिहासिक हैं और न अर्धमागधी भाषा की विशेषताओं को स्पष्ट करते हैं) अलग अलग पाठों को स्वीकार किया हैं जिसके कारण शब्दों की वर्तनी में कितना अन्तर आया है और यह अन्तर क्यों आया उसे ही समझना आवश्यक है । (1) किसी संपादक ने संयुक्त व्यंजन के पहले ए का इ कर दिया है, समिच्च (समेच्च) । (2) किसी ने त का, तो किसी ने द का लोप कर दिया है, नितिए, निइए, पवेदिते, पवेइए । (3। किसी ने प्रारंभिक न का ण कर दिया है, नितिए, णिइए, णितिए । 14, किसी ने क का लोप किया तो किसी ने क का ग कर दिया, लोयं, लोगं । लोय में उद्वृत्त स्वर की य श्रुति है । ___(5) किसी ने ज्ञ का न्न, तो किसी ने ज्ञ का ण्ण कर दिया है, खेयन्ना खेयण्ण । Jain Education International For Private &Personal Use Only . www.jainelibrary.org

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