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प्राचीन अर्धमागधी की खोज में/के. आर.चन्द्र
31. भूतकाल के बचे हुए प्राचीन प्रत्ययों जैसे कि --सि, -सी, -ई, ई; -त्था, –इत्या; –उ, -ऊ; -स्स, - अंसु, -इंसु को सुरक्षित रखा जाना चाहिए ।
32. ऋकार वाले धातुओं और कुछ अन्य धातुओं के कर्मणि भूत कृदन्तों के रूपों में मिलने वाला -ड प्रत्यय जैसे कि कड, मड, निव्वुड. अवहड, गड इत्यादि को बदला नहीं जाना चाहिए ।
___33. वर्तमान कृदन्त का प्रत्यय -मीन मिले तो रखा जाना चाहिए जैसा कि अशोक के शिलालेखां में मिलता है ।
34. संबंधक भूत कृदन्त के लिए -त्ता, -त्ताणं, - य (-इय) -या, –याणं, -च्चा, -चाणं प्राचीन प्रत्यय माने गये हैं । ___35. -त्तए (-इत्तए) हेत्वर्थक कृदन्त का प्राचीन प्रत्यय है ।
36. –भू धातु के लिए भव का प्रयोग भो, हव, हा और हु से प्राचीन माना जाना चाहिए ।
37. उन उन ऐतिहासिक रूपों को जो प्राचीन आर्य भाषा (OIA) के साथ सम्बन्ध रखते हैं (जिनमें कभी कभी ध्वनि-परिवर्तन भी हो गया हो तो) चाहे वे नामिक रूप हो, चाहे क्रियावाची रूप हो या कृदन्त हो उन्हें प्राचीनता की प्रामाणिक सामग्री के · रूप मे यथावत् रखा जाना चाहिए ।
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