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प्राचीन अर्धमागधी की खोज में/के.आर.चन्द्र
__13. संयुक्त ञ मिले तो उसे त्याज्य नहीं माना जाना चाहिए।
___14. संयुक्त व्यंजन ज्ञ, न्न और न्य का शुबिंग महोदय की तरह न्न किया जाना चाहिए । ण्य और f का न्न में परिवर्तन भी अशोक कालीन पूर्वी भारत की विशेषता रही है।
15. अर्हत् का अरहा या अरहन्त, आत्मन् का अत्ता या आता, क्षेत्रज्ञ का खेत्तन्न और अकस्मात् ये सब प्राचीन रूप हैं अतः ऐसे रूपों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ।
16. पुरस् का पुरे की तरह अधस् का अधे रूप मिले तो उसे रखा जाना चाहिए ।
17. अकारान्त पुंलिंग प्रथमा एकवचन की -ए विभक्ति यदि मिले तो बदले में-ओ नहीं की जानी चाहिए ।
18. नपुंसकलिंगी शब्दों में प्रथमा एवं द्वितीया के बहुवचन में यदि – णि विभक्ति मिले तो रखी जानी चाहिए ।
19. व्यंजनान्त शब्दों के तृ. ए. व. की प्राचीन विभक्तिवाले रूप मिले और कभी कभी स्वरान्त शब्दों के लिए यदि - सा प्रत्यय मिले तो रखा जाना चाहिर (जैसे - कायसा, पन्नसा) ।
20. तृ. ब. व. की विभक्ति-भि मिले तो-हि में नहीं बदली जानी चाहिए (जैसे – थीभि, पसूभि)।
21. अकारान्त पुलिंग शब्दों मे चतुर्थी ए. व. के लिए प्रयुक्त -आय या -आए विभक्ति को बदलना नहीं चाहिए ।
22. अकारान्त नामिक और सार्वनामिक रूपों में पंचमी में जहाँ अन्त में -अः (अर्थात् मात्र विसर्ग) आता है वहाँ - ओ के बदले में यदि - ए मिले तो उसे बदला नहीं जाना चाहिए । अशोक के पूर्वी
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