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प्राचीन अर्धमागधी की खोज में के.आर.चन्द्र
करने में प्रमाण रूप माना जाना चाहिए । अतः अकस्मा के स्थान पर अकम्हा के प्रयोग का पिशल महोदय का सुझाव उपयुक्त नहीं ठहरता है । ढ. कृ धातु का संबंधक भूतकृदन्त-'कट्टु'
संबंधक भूतकृदन्त के प्रत्यय - तु की चर्दा ऊपर की जा चुकी है । कृ धातु से बने 'कट्टु' के प्रयोग के बारे में यहाँ पर कुछ कहना है ।
- पिशल (577) के अनुसार 'कटु' के प्रयोग या – टु प्रत्ययवाले अन्य धातुओं के प्रयोग अनेक आगम ग्रंथों में मिलते हैं, उदाहरणार्थ आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, व्याख्याप्रज्ञप्ति, विपाकसूत्र, कल्पसूत्र, औपपातिकसूत्र इत्यादि । कट्टु के सिवाय अन्य प्रयोग पिशल महोदय ने इस प्रकार दिये हैं-अवहट्टु, आहटु, समाहटु, साहटु इत्यादि) ।
ध्वनि-परिवर्तन की दृष्टि से – तु प्रत्यय ही-ट्टु में बदला है । अशोक के शिलालेखों में कृ धातु का संबंधक भूतकृदन्त कटु (धौली पृथक्) और कटू (जौगड पृथक्) पूर्वी प्रदेश में मिलता है । अन्य क्षेत्रों में -टु के स्थान पर -तु. मिलता है ।।
इस प्रयोग के आधार से भी क्या ऐसा नहीं प्रमाणित होता है कि अर्धमागधी ग्रंथों की रचना पूर्वी प्रदेश में हुई है । ... अर्धमागधी आगम-ग्रंथों की भाषा में ऊपर दर्शायी गयी जो विशेषताएँ प्राप्त हो रही हैं उनका सम्बन्ध अशोककालीन भाषा के साथ होने से अर्धमागधी भाषा की प्राचीनता सिद्ध होती है और अशोक के पूर्वी प्रदेश की भाषा से जिन विशेषताओं का सम्बन्ध है
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