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आचार्य श्री हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण की अर्धमागधी भाषा
इन बिशिष्टताओं में त और थ के बदले में द और ध के प्रयोग मागधी और शौरसेनी के अवश्य हैं परंतु ऐसे प्रयोग कभी कभी पालि में मिलते हैं और प्राचीन शिलालेखों में मिलते हैं । —भि विभक्ति पालि के प्राचीन साहित्य में मिलती है। स्त्रीलिंग की - य, या और ये विभक्तियाँ प्राचीन शिलालेखों और पालि भाषा में मिलती हैं । वर्तमान कृदन्त - मीन अशोक के शिलालेखों में मिल रहा है । भूतकाल का - इप्रत्यय पालि भाषा में मिलता है और 'इसिमासियाई ' में भी ।
ये सब विशेषताएँ अर्धमागधी के प्राचीन साहित्य में किसी न किसी तरह बच गयीं क्योंकि अर्व भागधी साहित्य का प्रारंभिक -काल तो उतना हा पुराना है जितना पालि का और उस साहित्य के सर्जन का प्रदेश भी पूर्व भारत ही रहा है जहाँ भगवान महावीर ने और भगवान बुद्ध ने उपदेश दिये थे और उसी प्रदेश में अशोक के शिलालेखों में भी ऐसी प्रवृत्तियाँ मिलती हैं । अतः इन प्राचीन तथ्यों को ध्यान में लेना इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इनसे अर्धमागधी की मागधी भाषा के जितनी ही प्राचीनता सिद्ध होती है ।
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