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प्राचीन अर्धमागधी की खोज में के.आर.चन्द्र अन्य प्राकृतों की एकल दोकल विशेषताएँ भी सूत्रबद्ध करके समझायी गयी हैं । उदाहरणार्थ :(अ) शौरसेनी के लिए :
(1) पूर्वस्य पुरवः ४.4.270 ॥ पूर्व शब्द का पुरव ॥ (2) क्त्वा इय दूणौ 8.4 271 ।। सं. भू. कृ. के इय एवं
दूण प्रत्यय ।। (ब) मागधी के लिए :
(1) व्रजो जः 8.4.294 ___मागध्यां व्रजे: जकारस्स जो भवति ॥ वआदि । (2) तिष्ठः चिष्ठः 8.4 298 || चिष्ठदि ।। (3) अहं वयमोः हगे 8 4301
अहम् और वयम् का हगे होता है । (क) पैशाची के लिए :
हृदये यस्य पः ॥ हितपकं ।। 8.4.310 ॥ प्राकृत के लिए :(1) किराते चः ४.1.183 ।। चिलाओ ॥ (2) शङ्खले खः कः 8.1.189 ।। सङ्कलं ॥ (3) छागे लः 8.1.191 ।। छालो, छाली ।। (4) स्फटिके ल: 8.1.197 ॥ फलिहो । (5) ककुदे हः 8.1.225 ।। कउहं ॥ (6) भ्रमरे सो वा 8.1.244 ।। भसलो ॥ (7) यष्ट्यां लः 8.1.247 ।। लट्ठी ॥ आर्ष भाषा के उन्होंने जितने मी उदाहरण दिये हैं उन सब
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