Book Title: Prachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad

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Page 92
________________ आचार्य श्री हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण की अर्धमागधी भाषा ग्रन्थ में अलग से कोई व्याकरण नहीं दिया है यह एक आश्चर्य की बात है । मागधी भाषा में कोई विशेष स्वतंत्र साहित्य नहीं मिलता है परन्तु उस भाषा के लिए 16 सूत्र (8.4.287-302) दिये हैं । पैशाची भाषा के लिए 22 सूत्र (303-324) उपलब्ध हैं । चूलिका पैशाची का कोई साहित्य ही नहीं मिलता है फिर भी 4 सूत्र (325-328) दिये हैं । शौरसेनी साहित्य दिगम्बर आम्नाय में अधिक प्रमाण में मिलता है तथापि उसके लिए भी 27 सूत्र (260286) मिलते हैं और अपभ्रंश भाषा के लिए उन्होंने 118 सूत्र दिये हैं । स्वयं श्वेताम्बर होते हुए भी श्वेताम्बर अर्धमागधी आगमों की भाषा के लिए कोई स्वतंत्रा सूत्र एक स्थल पर व्यवस्थित रूप में नहीं लिखे हैं जबकि अर्धमागधी आगम साहित्य विपुल प्रमाण में उपलब्ध है । क्या जिस प्रकार अन्य भाषाओं का व्याकरण उन्हें परम्परा से प्राप्त हुआ उस प्रकार अर्धमागधी का प्राप्त नहीं हुआ या अर्धमागधी साहित्य की भाषा उनके समय तक इतनी बदल गयी थी कि उसके लिए अलग से सूत्र बनाना असंभव सा हो गया था । उनके व्याकरण के सूत्रों से तो ऐसा लगता है कि जो सामान्य प्राकृत के लक्षण हैं वे ही प्रायः अर्धमागधी के लिए भी लागू होते हैं और कुछ विशेषताओं के लिए उन्होंने बीच-बीच मे वृत्ति में उल्लेख कर दिया है । प्रारंभ मे ही 'आर्षम्' का सूत्र देकर उसकी वृत्ति मे (8.1.3) उन्होंने जो कहा है कि 'बहुलं भवति' एवं 'आर्षे हि सर्वे विधयो विकल्प्यन्ते' अर्थात् आर्ष में बहुलता पायी जाती है और उसमें सभी विधियाँ घटित होती हैं । इससे तो यहीं साबित होता है कि अन्य भाषाओं का व्याकरण लिखने का श्रम किया परन्तु अर्धमागधी के 2. नाटकों में प्रयुक्त मागधी के अतिरिक्त कोई स्वतंत्र कृति नहीं मिलती है । - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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