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प्राचीन अर्धमागधी की खोज में के.आर.चन्द्र
1.1.2.13) । पिशल महोदय ने ( 361, 364) इसके अनेक उदाहरण
आगम साहित्य से प्रस्तुत किये हैं । ... इसी विभक्ति का पूर्वरूप-आये हमें अशोक के शिलालेखां में प्राप्त हो रहा है (मेहेण्डले पृ. 28 ) उदाहरण :
इमाये अठाये (अस्मै अर्थाय ) धौली 5.7, इमाये धंमानुसाथिये (अस्मै धर्मानुशिष्ट्यै) धौली-3 2
शाहबाजगढी और मानसेहरा में भी 'अठाये' रूप मिलता है। मध्य, पश्चिम और दक्षिण क्षेत्रों में यह विभक्ति नहीं मिलती है। यही - आये विभक्ति परवर्तीकाल में उत्तर-पश्चिम में-आए में बदल जाती है परंतु अन्य सभी क्षेत्रों में बाद में आय के रूप में ही मिलती है ( मेहेण्डले प. 283)। पूर्वी क्षेत्र के परवर्ती काल के शिलालेख नहीं मिलने के कारण उस क्षेत्र के उदाहरण नहीं दिये जा सकते। घ. वर्तमान कृदन्त के प्रत्यय—मान के स्थान पर-मीन .. अर्धमागधी आगम-ग्रन्थों में वर्तमान कृदन्त-मान के लिए कभी कभी - मीन का प्रयोग मिलता है । कभी कभी -. मीन को पाठान्तर में रख दिया गया है और स्वीकृत पाठ में - मान,-माण ही रखा गया है । पिशल महोदय के अनुसार आचारांग में ही यह प्रत्यय अधिक मात्रा में मिलता है (562) । उदाहरण :
___घायमीण, समणुजाणमीण, अणाढायमीण, आगममीण, अभिवायमीण, अपरिग्गहमीण, अममायमीण, आसाएमीण (आचा. शुबिंग, पृ. 31,33, म. जै. वि. सूत्र. 192, 199), विकासमीण (सूत्रकृतांग), भिसमीण,
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