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प्राचीन अर्धमागधी की खोज में के.आर.चन्द्र
आगम-ग्रन्थों से प्रस्तुत किये हैं। उन्होंने जिन जिन ग्रन्थों से जो जो शब्द दिये हैं वे अहा (यथा) और आव (यावत् ) संबंधी इस प्रकार हैं (देखिए पिशल - 335, 404, 565 ) ।
आचारांग : (अ) अहाकप्पं, अहाणुपुव्वीए, अहारिहं, अहासुटुमं, अहासुयं, अहातिरित्त, अहाकडं, अहासच्च, अहापरिजुण्ण; (ब) आवकहं, आवकहाए, आवन्ती (इत्यादि)।
सूत्रकृतांग : अहाकम्माणि, आहाकडं; आवकहा ( इत्यादि) । स्थानांग :-अहाराइणियाए; आवकहाए ( इत्यादि ) । व्याख्याप्रज्ञप्ति - अहामग्गं, अहासुतं, (इत्यादि)।
ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, कल्पसूत्र:--अहाकप्पं, अहामग्गं,, अहासुतं ।
औपपातिक सूत्र :-अहाणुपुवीए । उत्तराध्ययन सूत्र :-अहाकम्मेहिं ।
प्रारंभिक य को अ में बदलने के विषय में प्रो. मेहेण्डले (पृ. 274) का कहना है कि अशोक के शिलालेखों में पूर्वी प्रदेश की यह प्रवृत्ति है और इस प्रदेश के प्रभाव के कारण अन्य क्षेत्रों में भी पायी जाती है । अशोक के पश्चात् यह प्रवृत्ति कम हो जाती है परन्तु पूर्वी प्रदेश में द्वितीय शती ई. स. पूर्व लक कुछ ऐसे उदाहरण मिलते हैं ( मेहेण्डले, पृ. 13 ) ।
शिलालेखीय उदाहरण :अथा ( यथा ) धौली, जौगड, कालसी एवं स्तंभलेख,
(अन्यत्र-यथा)। आवं, आवा (यावत् ) धौली, कालसी, स्तंभलेख, गिरनार,
शाहबाजगढी और मानसेहरा ।
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