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प्राचीन अर्धमागधी की खोज में/के.आर.चन्द्र
1. आचारांग नवीन संस्करण -
पूर्ववर्ती संस्करण अवियाणओ(म.जै.वि.1.1.6.49 जै.वि.भा.) । अविजाणओ - शु. णिइए (जै. वि. भा. 1.4.1.2) नितिए -शु. बहुया (म. जै. वि. 1.2.4.82) बहुगा-शु. आगमो,जै.वि.भा.. अदक्खु (म.ज.वि. 12 5.88;1.9.2.70, ! अदक्खु - शु. आगमो.
जै. वि.भा.) • कूराई कम्माई (म.जै.वि. 1 24.82, कूराणि कम्माणि - आगमो.
जै. वि. भा.) २. सूत्रकृतांग नवीन संस्करण
पूर्ववर्ती संस्करण विवेगमायाए (म. जे.वि. 1.4.1.10) | विवेगमादाय (आल्सडर्फ) (ण) मूल उपदेशक की भाषा परवर्तीकाल की जबकि उसके संग्रहकर्ता की भाषा में प्राचीनता
(१) आचारांग (म. जै. वि. ) (अ) संग्रहकर्ता की भाषा
तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेदिता (सूत्र. 7)
सोच्चा भगवतो अणगाराणं इहमेगेसि णातं भवति सूत्र. 14) देखिए सूत्र नं. 24, 25, 35, 36, 43, 44, 51, 52,
और 58, 59 भी ।
(ब) ऊपर के उदाहरणों में मध्यवर्ती-त,-द-इत्यादि का लोप नहीं है जब कि नीचे मूल उपदेश से दिये गये उदाहरणों में इनका लोप मिल रहा है : -
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