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प्राचीन अर्धमागधी की खोज में/के. आर. चन्द्र
प = प
है प = व उपकसन्ति (1.20) विरूव--रूवाणि (1.6) न = न
न = ण सुहुमेनँ (1.2)
छन्नपएण (1.2) (अय = ए)
(अय = अ) निमन्तेन्ति
दंसति ज्ञ = न्न
ज्ञ = ण खेदन्न
पण्णा (2) कभी कभी एक ही वाक्य में अलग अलग तीन स्तरों के
शब्द-प्रयोग आचारांग (म. ज. वि.) (अ) वितहं पप्प खेत्तपणे तम्मि ठाणम्मि चिट्ठति- 1.2.3.79
इस वाक्य में तीन स्तर के शब्द इस प्रकार हैं:स्तर । प्रथम द्वितीय तृतीय पप्प
खेत्तण्णे चिट्ठति वितह
ठाणम्मि (आ) वघेति । वहति । वहिति । 1.16.52 (इ) । सदा सता ।
1.1.4.33
एगदा ! एगया । 111.67 (३) अलग - अलग ग्रंथों के एक समान शब्दों में कालान्तर से
आगत ध्वनि-परिवर्तन से उनके रचना-काल की पूर्वापरता की प्रतीति
तम्मि
(३) । सदा सताया
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