Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 4
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 10
________________ į : बिष्टिदेव ने पूछा, "चाविमय्या! तुमने बात करने वालों की जो नामावली बनायी हे उसे दो । चाविमय्या ने नामावली प्रस्तुत की। "सालिगावे के श्रीनिवास वरदाचार्य मंच पर आवें।" बिट्टिदेव ने कहा । चाविभय्या ने जोर से इसी नाम को पुकारा। एक बुजुर्ग डरते हुए उठ खड़े हुए। उनके हाथ काँप रहे थे। उम्र के कारण काँप रहे थे या डर से - सो तो मालूम नहीं हुआ। " 'आप कहाँ के निवासी हैं ?" "सालिगाने के।" "किस मत के ?" ** श्री आचार्य रामानुज का शिष्य हूँ।" " कब से ?" " दो-तीन साल हुए। " " इसके पहले ?" " हेब्बार था । " "मतलब ?" "उच्च ब्राह्मण । शंकराचार्य का शिष्य ।" " तो तब अद्वैती ?" " "अब विशिष्टाद्वैती ।" 6+ आप यहाँ कब आये ?" "तीन दिन हुए।" "तो...." 41 'यहाँ जिस दिन विग्रह का परिशीलन हुआ न, उसी शाम को ।" 'तो आप यहाँ के लिए नये हैं ?" "हाँ ।" "सुना कि गोष्टी बिठाकर खूब बातें करते रहे, मानो आप बहुत बातें जानते "हाँ ।" "इस तरह झूठ-मूठ बोलना ठीक है ?" "मैं झूठ क्यों कहूँ ? जो कहा वह सत्य है, इसी विश्वास से कहा । " 11 'वह यदि सत्य हो तो आपने देखा होगा न ?" 14 'सब कुछ देखा कैसे जा सकता है ? जिसने देखा है, उससे सुना है।" " तो आपने जो कहा उसकी सत्यता आपको मालूम नहीं। जिससे सुना उसे विश्वस्त मान लिया, यही न?" 14: पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार =

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