Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 4 Author(s): C K Nagraj Rao Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 9
________________ i तक मैं समझता हूँ यह पूर्व नियोजित प्रतीत होता है। क्योंकि मैं भी पट्टमहादेवीजी की तरह जिनभक्त हूँ। पहले मुझे मालूम नहीं हुआ, इसका मुझे दुःख नहीं। मैं यह भी नहीं सोचता कि पहले मालूम न कराये जाने से मेरा अपमान हो गया। जब तक मैं प्रधान बना रहूँगा, तब तक राजसभा को जिस रीति से चलना चाहिए उसी रीति से 'चलना होगा। इसमें क्षमा करें, स्वयं महासन्निधान को भी स्वातन्त्र्य से काम लेना ठीक नहीं होगा। पट्टमहादेवीजी अपने स्थान पर रहें, तभी सभा का सही रूप रहेगा। उनका स्थान बदलना गलत होगा। अतः अपने स्थान पर पट्टमहादेवीजी विराजें, इसके लिए सन्निधान अनुमति दें। उनके रहते उनका स्थान रिक्त नहीं रहना चाहिए।" गंगराज की बातों का प्रभाव पड़ा। इधर-उधर फुसफुसाहट होने लगी। तिरुवरंगदास फक पड़ गया। अपनी बेटी की ओर उसने देखा । पट्टमहादेवी उठ खड़ी हुईं। मौन छा गया। " महासन्निधान के समक्ष एक विनती है। वैसे ही प्रधानजी के समक्ष एक प्रस्ताव प्रस्तुत कर रही हूँ," कहकर पट्टमहादेवी रुक गयीं। लोग प्रतीक्षा करने लगे, आगे क्या बोलेंगी I "प्रधानजी, दण्डनीय आरोप जिस पर हो, उसके लिए हमारे इस राज्य में कौनसा स्थान है ?” पट्टमहादेवी ने पूछा। 44 'अभियुक्त तो अभियुक्त ही हैं। उसके लिए तो वहीं, अभियुक्त का ही स्थान है । " " समझ लीजिए कि आप स्वयं अभियुक्त हों तब भी आप प्रधान के स्थान पर बैठ सकेंगे ?" "सो कैसे होगा ?" EL 'तो यह भी सम्भव नहीं। धर्म की बात हैं। उसके साथ और-और बातें भी जुड़ी हैं। बात यहाँ तक बढ़ गयी हैं कि इस प्रतिष्ठा महोत्सव का बहिष्कार करें ! हम अपने अधिकार के बल पर इस तरह की प्रवृत्ति पर रोक लगाकर काम चलावें, यह उचित नहीं। अभी आपको सम्पूर्ण ब्यौरा मालूम नहीं। इस भरी सभा में कौन-कौन-सी बातें प्रकट होंगी, किस-किस महात्मा के मन में भगवान् बैठकर क्या-क्या कहलवाएँगे, उन सबका सामना करना पड़ेगा इन अभियुक्तों को। मुझे भी इन अभियुक्तों में सम्मिलित किया गया है। अतः मेरा उस स्थान पर बैठे रहना उचित नहीं । सन्निधान के आश्रश्र में रहनेवाले किसी के भी मन में ऐसी भावना उत्पन्न नहीं होनी चाहिए कि यहाँ न्याय नहीं मिलेगा। इसलिए मैं अब जहाँ हूँ, वही मेरे लिए उपयुक्त स्थान है। प्रधान बनकर आपने पट्टमहादेवी के स्थान मान की प्रतिष्ठा रखी, इसके लिए मैं कृतज्ञ हूँ।" पट्टमहादेवी ने स्पष्ट किया। सारी सभा स्तब्ध रह गयी । पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार :: 13 :Page Navigation
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