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ॐ भूमिका
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यशः शेष उत्साही इतिहास - प्रेमी लेखक दौलतसिंहजी लोढ़ा अपरनाम कवि 'अरविन्द' की प्रतिकृति, इस इतिहास के पृ० १८६ में है और वहां पृ० १८६ से १८६ तक उसका उचित परिचय श्री जवाहरलाल लोढा (सम्पादक- 'श्वेताम्बर जैन' आगरा) जैसे गुरगज्ञ सज्जनने कराया है । मैं पुनरुक्ति करना नही चाहता । 'प्राग्वाट इतिहास' के बाद यह 'पल्लीवाल जैन इतिहास' लिख कर लेखक ने सचमुच समाज को अनुगृहीत किया है, अपने को 'भ्रमर' बना दिया हैं ।
पल्लीवाल जैन समाज कैसा सद्गुणी, सत्कर्तव्य परायण, प्रशंसनीय था ? और है- उसका इतिहास लिखना, प्रामाणिक परिचय, या दिग् दर्शन कराना सहज बात नहीं है । प्राचीन संस्कृत प्राकृत ग्रन्थों में ताड़पत्रीय और कागज पुस्तकों में, प्रशस्तियां; तथा जैन प्रतिमा - लेखों में मिलती हैं । अस्त-व्यस्त इधर-उधर बिखरी हुई साधन-सामग्री को ढूंढ़ कर, समझ कर व्यवस्थित संकलित करना, प्रामाणिक इतिहास की रचना करना बहुत परिश्रम-साध्य अत्यन्त गहन कठिन कर्तव्य है । कर्तव्य-निष्ठ परिश्रमशील विचक्षण बुद्धिशाली सद्गत लोढाजी यह कर्तव्य यथामति यथाशक्ति बजा कर स्वर्ग सिधार गये । आशा है, इस इतिहास से समाज को शुभ प्रेरणा मिलेगी। अपने कीर्तिशाली संस्मरणीय पूर्वजों कैसे सच्चरित्र, सद्गुणी, प्रतिष्ठित सुशिक्षित सज्जन नररत्न उच्च संस्कारी नागरिक थे और समयोचित कर्तव्य
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