Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 12
________________ अलमेव विच्छुआण, मुहमेव अहीण तह य मंदस्स / दिहिचियं पिसुणाण, सव्वं सबस्स भयजणय // 41 // खलसज्जणाण दोसा, गुणा य को वण्णिउतरइ लोए / जइ नवरि नायराओ, दोही जीहासहस्सेहिं / / 42 / / गुणिणो गुणेहि विहवेहि विहविणो होन्तु गब्धिया नाम / दोसेहि नवरि गव्यो; खलाण मग्गो चिय अउन्यो // 43 // एवं चिय बहुलाओ, जीविज्जइ जं खलाण मज्झमि / लाहो ज न डसिज्जइ, भुयंगपरिवेढिए चलणे // 44 / / मा बच्चह वीसंभ, पमुहे बहुकूडकवडभरियाण। निवत्तियकज्जपरम्मुहाग सुणयाण. व खलाण // 45 / / मलिणा कुडिलगईओ, परछिदरया य भीसणा डसणा / पयपाणेण वि लालयन्तस्स मारंति दोजीहा / / 46 / / विरसं भसंति सविसं, डसंति जे छन्नमिति सुंधता / ते कस्स लद्धछिद्दा; दुजणभसणा. सुहं दिति / / 47 / / धिद्धी ताण नराण, जे पररमणीण रूवमित्तेण / खुहिया हणति सनां, कुलजससन्गापवग्गसुहं // 48 // अन्नं च तस्स कीरई, पढम चिय पत्थणा खलजणस्स / बीहेइ कविजगो जस्स मुसओ इब विरालस्स // 49 / / अहवा सहार उ चिय, दोसग्गहणंमि वावडमणस्स / अभत्थणासएहि वि, न खलस्स खलत्तण गलइ // 50 // कुडिलत्तणं न उज्झई, परच्छिदगवेसओ य दोजीहो / पत्थिज़्जतो वि कवीहिं दुज्जणा सप्पसारिच्छो // 51 //

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