Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
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________________ It चरं हालाहलं भुचं, वरं अरियरवेसणं / चरं सप्पेहि सहवासो, मा पमायाण संगमो // 463 / / जह नईमहुरसलिलं, सायरसलिलं कमेण संपन्वं / .. पावेइ लोणभावं, मेलणदोसाणुभावणं // 464 // एवं सुसीलवंतो, असीलवंतेहिं मेलिओ संतो / पावइ गुणपरिहाणी, मेलणदोसाणुसंगेण // 465 // जो जारिसं संगं, करेइ सो चावि तारिसो होइ / कुसुमेहि समं वसंता, तिला वि तरगंधिया हुंति // 466 // अंजणं चक्खुसंगणं, मालासंगेण सुत्तमं / तहा सज्जणसंगणं, सव्ववत्थूण गोरवं // 467 // अंबस्स य निंबस्स य, दुण्हंपि संग्रयाई मूलाई / संसग्गेण विणट्ठो, अंबो निबत्तणं पत्तो // 468 // सुचिरंपि अच्छमाणो, वेरुलिओ काचमणी अ उम्मीसो / न उवेइ काचभावं, पाहण्णगुणेण नियएण // 469 / / भारक्खमे वि पुत्ते, जो नियभारं ठवितु निश्चिन्तो / न य साहेइ सकज्ज, सो मुनखसिरोमणी भणिओ // 470 // परपत्थणापवन, मा जणणि जणेसु एरिसं पुत्तं / मा उयरेवि धरिज्जसु, पत्थणभंगो कओ जेण // 471 // वरमग्गिम्मि पवेसो, वरं विसुद्धेण कम्मुणा मरणं / मा गहियव्वयभंगो, मा जीयं खलियसीलस्स // 472 / / दीणदरिदा परवसणदुबला अयसरक्षणसमत्था / जे एयारिसपुरिसा, धरणी धरती क्रयत्था सि // 473 // Hit:1!11!1!

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