Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
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________________ माया जायइ पत्ती, पत्ती मरिऊण होइ पुण माया / बहिणीवि होइ धूआ, धूआ बहिणीवि पत्तीवि // 703 // पुरिसोवि होइ इत्थी, नपुंसगत्तेण सोवि संजायइ / कुंथूवि होइ हत्थी, हत्थी कुंथूत्तणमुवेइ / / 704 // नत्थि हु कोइ अपुवो, जमो देहोवि जं न जीवेण / गहिऊणं पुणं मुक्को, भवपरिवाडी भमंतेणं / / 705 / / कत्थइ महुरं गीअं, पिअयणसहिएण उववणे रम्मे / कत्थइ गुरुअविलावा, पियविरहविसंथुलेण कया // 706 // बहुसो नरयगयेणं, विअणांनिवहेहिं पूरिओ कालो / कंदंतकरतेणं, सागरमाणो महाघोरो // 707 // निरउव्वट्टोवि पुणो, संसरमाणो तिरियजोणीसु / खुहतिण्हवेयणहओ, भमिओ संसारकंतारे // 708 // तिरियत्तणा उवट्टो, संसरमाणो मणुस्सजाईसु / विविहं दुक्खं दुग्गं, सारीरं माणसं पत्तो // 709 / / तुडिचडणेण भमंतो, सुरालयं कहवि पाविउ जीवो / पाहुणउव्व रमित्ता, कइवि दिणेन्नत्थ पुण एइ // 710 // जम्मजरमच्चुरोगा, सोगा बाहंति सबलोगम्मि / मुत्तूण सिद्धिखितं, संसाराइअभावंति // 711 // एसो चउगइगुहिरो, संसारमहोअही दुरुत्तारो / मच्छुब्व जहा जीवा, अणोरपारंमि भमणंति // 712 // इअ संसारे असारे अणोरपारंमि ताव हिंडंति / . जाव न दयाइधम्मं, जीवा काऊण सिझंति // 713 //

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