Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
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________________ 326 . . 28 मीवाणमभयदाणं नीवेण भवे भवे जीवो वाहिविलुत्तो जुज्जह काउं सोगो जुन्वणं रुव संपत्ती जे जे गुणिणो जे बंभचेर भठा जेण परो दुमिज्जइ जे लिंबपतमित्ता जोइक्खो गिलइ तमं जो इहलोए पुरिसो जो कारवेइ जो कुणइ नरो जो कुणइ नियम जो कुणइ परस्स जो कोइ मए जो गुणइ लक्ख जो जाइ जुवईवग्गे जो जाणइ जस्स जो जारिसं संगं जो जीववहं का जो जेण सुद्ध जो देइ कणगकोडि . को देइ उवस्संयं बो देवाण वि पुज्जो . यो धर्म कुणइ 248 | जो पढइ अपुन्वं 788 664 | जो पहरइ जीवाणं 633 | जो रीरीति काऊण 314 टंडत मूकतं 254 ठाणं गुणेहि लन्भइ तक्क विहुणो विज्जो - 808 तण संथार निविहो 830 तत्थ वि य केइ 878 तत्तिल्लो विहिराया तस्स न हवेइ 481 152 तसरं पंडुरथेरं 676 781 तह कम्मवाहिगहिओ 262 तह दुलहं महग्धेअं 690 : 387 | तह निस्सीलसुसीले 241 तह सत्थवाह भज्जा 536 तहिं पंचिंदिया जीवा 159 509 तं कत्थ बलं तं अत्थं तं च सामत्थं 1006 804 तं कपि नस्थि 327 तं रुवं जत्थ गुणा 253 / ता किं भएण किं ... 994 874 | ता तुंगो मेरुगिरी 425 . 161 ताण नमो ताण ..614 871 ताण विसयाण सम्म : 607 515 ताधीर मा विसीअसु 753 . 625, ता य विदत्ता 39 127 * 95

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