Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 121
________________ 18 354 592 . 305 .. 921 768 997 660 806 सवहे कुणंति अलिए सव्वम्स उवयरि सम्वरयणामएहिं सम्वसिद्धि सम्वनइणं सव्वासि पयडोणं सव्वाण वि सम्वाओ वि नईओ सम्वेमि सत्ताणं सव्वेसि अणिच्चत्तं सम्वे देवा सम्वे जीवा सम्वेवि गुणा सव्वे जीवा वि इच्छंति सव्वे वि दुक्खभीरु सम्वे खमंतु सम्वो पुधकयाणं सविआरं ससरीरे वि निरीहा संझारागजल संगमय कालसूरी संगामे गय संतगुणकित्तणेग संतमसंतं संजमजोए संजोग सिद्धि 280 | संतमि जिणुद्दिठे संतेहिं असंतेहें 511 संपइदंसी संपत्थियाण संमत्तंमि उ संसारे हय विहिणा 337 संसार भमण करणा 933. संसारे नत्थि सुई | संसारो दुक्खहेऊ .110 संसारो न दुरुत्तरो साइज्जइ परमप्पा 695 सा जाई तं च 217 सा नत्थि कला .252 सायरजलपरिमाणं 404 सामग्गीअभावाओ सोमण्णमणुचरं 186 सामाइअं तु . 604 सामी अविसेसन्नू 934 सामित्तं लहिऊणं 134 सामी जायइ दासो 856 सायर ! तुज्झ 210 सावज्जऽगवज्जाणं 812 | साहम्मिआण वच्छल्लं | साहूण वि भत्तिए 847 सिंगारतरंगाए . 955 | साहम्मियंमि पत्ते 858 .568 942 701 890 978 1007 * 976 84 1008

Loading...

Page Navigation
1 ... 119 120 121 122 123 124