Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
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________________ 72 सम्मत्तपत्तजीवा, नारयतिरिआ न हुंति कइआवि / सुहमाणसदेवेहि, उप्पज्जित्ता सिवं जंति / / 747 / / चिंतय रे जीव ! तए अन्नाणवसेण विवेगरहिएण / विअणाउ अमाणाउ, नरएसु अणंतसो पत्ता // 748 // अच्छिनिमीलणमित्तं, नत्थि सुहं दुक्खमेव पडिबद्ध / नरए नेरइआणं, अहोनिसं पच्चमाणाणं // 749 // . जं नरए नेरइआ, दुक्खं पाति गोअमा ! तिक्खं / तं पुण निगोअमज्झे, अणंतगुणिअं मुणेअव्वं // 750 // सूइहिं अग्गिवण्णाहिं, संभिन्नस्स निरंतरं / जावइ गोयमा ! दुक्खं, गम्भे अट्ठगुणं तओ // 751 // जायमाणस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स जंतुणो / तेण दुक्खेण संतत्तो, न सरई पुबजाइयं // 752 // ता धीर मा विसीअसु, इमासु अइअप्पवेअणासु तुमं / को उत्तरिउ जलहि, निबुड्डए गुप्पईनीरे ? // 753 // न परो करेइ दुक्खं, नेव सुहं कोइ कस्सई देई / जं पुण सुचरिअदुचरिअ, परिणमइ पुराणयं कम्मं // 754 // न हु होइ सोइअव्यो, जो कालगओ दढं समाहीए / सो होइ सोइअयो, तवसंजमदुबलो जो उ // 756 // तित्थयरा गणहारी, सुरवइणो चकिकेसवा रामा / संहरिया हयविहिणा, सेसजिएमु च का गणना ? // 757 // जंचिअ विहिणा लिहिअं, तं चित्र परिणमइ सयललोयस्स / इअ जाणिऊण धीरा, विहुरेवि न कायरा हुंति // 758 //

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