Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
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________________ 74 लद्धं अलद्धपुष्वं, जिणवयणरसायणं अमयभूअं / गहिओ सुग्गइमग्गो, नाहं मरणस्स बीहेमि / / 770 // सुअसायरो अपारो, आउ थोवं जिआ य दुम्मेहा / तं किंपि सिक्खिअव्वं, जं कज्जकरं च थोवं च // 771 // जहा खरो चंदणभारवाही, भारस्स भागी न हु चंदणस्स / एवं खु नाणी चरणेण हीणो, नाणस्स भागी न हु सुग्गईए // 772 / विरला जाणंति गुणा, विरला विरयंति ललिअकव्वाई। विरला साहस्सधणा, परदुक्खे दुखिआ विरला // 773 / / तेलुक्कस्स पहुत्तं, लध्दूणवि परिवडंति कालेणं / सम्मचे पुण लद्धे, अक्खयसुक्ख लहइ मुक्खं // 774 // जं सक्कइ तं कीरइ, जं च न. सक्कइ तयंमि सदहणा / सदहमाणो जीवो, वञ्चइ अयरामरं ठाणं // 775 / / चिंतइ जइकज्जाइ, न दिट्ठखलिओवि होइ निन्नेहो / एगंतवच्छलो जइजणस, जणणीसमो सड्ढो / / 776 // उम्मग्गदेसओ निन्हवोऽसि, मुढोऽसि मंदधम्मोऽसि / इअ सम्मपि कहतो, खरंटए सो खरंटसमो / / 777 / / महुमज्जमसभेसज्ज-मूलसत्थग्गिजंतमंताइ / न कयावि हु कायव्वं, सड्ढेहिवि पावभीरूहि // 778 / / इहलोए दूरिआई', दूरं गच्छंति हुंति रिद्धीओ / परलोए सुररिद्धी, सिद्धिवि जिणिंदपूआए // 779 / / . रक्खतो जिणदबं, परिससंसारिओ जिओ होइ / वड्ढंतो जिणदव्वं, तित्थयरत्तं लहइ जीवो / / 780 //

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