Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 94
________________ 87 अह न सकेइ काउं, एगभत्तं सया पुणो / दिवसस्स अट्ठमे भागे, तओ भुंजे सुसावओ // 910 // पण्णाऽण्णाण परीसह, नाणावरणमि हुंति दो चेव / इक्को अ अंतराए, अलाभपरीसहो चेव / / 911 / / अरई अचेल इत्थी, निसीहिआ जायणा य अक्कोसा / सक्कारपुरक्कारे, चरित्तमोहंमि सत्तेव / / 912 // दसणमोहे सण-परीसहो निअमया हवइ इको / सेसा परीसहा खलु, इक्कारस वेअणिज्जमि // 913 // बावीसं बायरसंपराइ, चउदस य सुहुमरागंमि / छउमत्थवीअरागे, चउदस इक्कारस जिणंमि // 914 // वीसं उक्कोसपए, वटुंति जहण्णओ अ इक्कं च / सी-उसिण-चरिअ-निसीहिआ य जुगवं न वटुंति // 915 // विहवाणुसारओ पुण, सड्ढेणं संजयाण दायव्वं / गुणविरहिआणमुचिअं, सगुणाण पुणो सुभत्तीए / 916 / / निअगोअं खवे कम्मं, उच्चगो निबंधई / सिढिलं कम्मगंठिं तु, वंदणेणं नरो करे // 917 // आलोयण पडिक्कमणे, मीस विवेगे तहा विउस्सग्गो। तव छेअ मूल, अणवट्ठिया अ पारंचिए चेव // 918 // सो हु तवो कायव्यो, जेण मणोऽमंगुलं न चिंतेई / जेण न इंदिअहाणी, जेण य जोगा न हायति // 919 // न य किंचि अणुन्नायं, पडिसिद्ध वा वि जिणवरिंदेहि / तित्थगराणं आणा, कज्जे सच्चेण होअव्वं // 920 //

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