Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 106
________________ 571 567 644 832 892 3 75 344 779 220 आणाखंडणकारी आयरिअ उवज्झाए आरंभे नत्थि दया आरंभिज्जइ लहुयं आरियखित्ते वि मए आरियमणारिए आरुग्गं सोहगं आरोग्गसार आलस्सोवह अन्ने आलोयण पडिक्कमणे आवइगयपि सुहए आवस्सयमुभयकालं आसज्जदुजणं आसन्न सिद्धिआणं इस जाणिऊण एवं इअ पुवमुणिवराणं इअ भावणासुमंतं इअ मोहविसं घायइ इअ संसारे असारे इठाणं वत्थूणं इकेणं पि विणा इग नि ति चउरिंदियए इद घणु फेण सुविणय इंदिव चवल तुरंगा . इत्थीग जोणि इत्यीणं बोणीसु 947 | इय खामणा उ एसा इय चउगइमावन्ना 814 | इय जं पाविति य 368 इय जाव न चुकसि 558 | ईसा विसायमय 884 इह भरहे केवि इह लोए च्चिय दीसइ इह लोए च्चिय जीवा 723 इह लोए दूरिआई 918 इह लोए परलोए 441 उइअम्मि सहस्सकरे 765 उक्कोसं दव्वत्थयं उक्कोसेणं तु सट्ठो उ 842 उच्छन्ना किंच जरा 626 उच्छिठं विठं 613 उज्झिय विसय पसंगं 620 उत्तमपुरिसाणं खलु 923 उत्तमजणसंसग्गी 713 | उदओ भुवणक्कमणं 986 उदयम्मि वि अत्थमणे 477 उन्नयमाणा अक्खलिय उन्भेउ अंगुलिं सो 121 उम्मग्गदेसओ निन्हवोऽसि 478 उवएसा दिज्जति उवभुजिऊं न याणइ 958 / उवलद्धो जिणधम्मो 948 909 623 160 432 950 117 777 891 818

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