Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 108
________________ 181 ته r س 422 74 . किवणत्तणेण अन्ने किवियाणं धणं नागाण क अत्थि कोइ भुवणम्मि किं अत्थि नारगो वा कि जंपिएण बहुणा किं ताए पढियाए किं तीए सिरीए पीवराए किं तीए सिरीए सुंदरी कि पदिएण सुएण य किं पुण वाहिजरारोग किं पेम्म को व पिओ किं बहुणा भणिएण : किं भूसणेहिं किं वा कुलेण कीरइ किं वा विसयपरवसा . किं सुमिणछि कीलसि कियन्तवेलं कुच्छिअदेवाराहग कुडिलत्तणं च वंकत्तणं कुडिलत्तणं न उज्झइ कुणउ तवं कुवियस्स आउरस्स कुसग्गे जह ओसबिंदुए केण ममेत्थुप्पत्ती केसिंचि होइ चित्तं को इत्थ सया सुहिओ 728 / को एत्थ सया सुहिओ | को कस्स इत्थ सयणो 202 | को कुवलयाण गंध 419 320 को चक्कवट्टिरिद्धिं 224 को चित्तेइ मयूर को दाऊण समत्थो 195 64 को नारयाण धम्म '716 को वि न अन्भत्थिज्जइ / 632 को वि न अवमन्निज्जइ 367 कोहणसीला अन्ने 725 कोहस्स निगाहणं 211 / 105 कोहाहिभूआ न सुहं 377 433 कोहो पीइं पणासेइ 74 को हो विसं कि 381 588 खणदिट्ठ नटठ 315 खण भंगुर सरीरं खण भंगुरे सरीरे 128 119 खणमित्त सुक्ख कज्जे खणमित्तसुक्खा 800 खंतिए गुणसमेओ 448 खंति दयादम जुत्तो 219 135 / खंति सुहाण मूलं 322 | खंडीकओ वि पज्जालिओ 514 खण्डिज्जइ विहिणा 385 / खरफरुसं सिप्पिउडं 651 mo 2 *wM mr mmm roman 180

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