Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 83
________________ न कयं दीणुद्धरणं, न कयं साहम्मिआण वच्छल्लं / हिअयंमि वीअराओ, न धारिओ हारिओ जम्मो // 792 // कारण बंभचेरं, धरंति भव्या उ जे असुद्धमणा / कप्पंमि बंभलोए, ताणं नियमेण उववाओ // 793 // देवदाणवगंधव्वा, जक्खरखसकिनरा / बंभयारिं नमसंति, दुक्करं जे करंति तं // 794 // अरिहंतेसु अ रागो, साहुसु बंभयारिखें। एस पसत्थो रागो, अज्ज संरागाण साहूणं // 795 // उवलेवो होइ भोगेसु, अभोगी णोवलिप्पइ / भोगी भमइ संसारे, अभोगी विप्पमुच्चइ // 796 // संसारे हयविहिणा, महिलारुवेण मंडिअं पासं / बझंति जाणमाणा, अयाणमाणावि बज्झति // 797 // अणंता पावरासीओ, जाव उदयमागया / ताव इत्थीत्तणं पत्तं, सम्म जाणाहि गोअमा ! // 798 / / तावच्चिअ सयलजणो, नेहं दरिसेइ जाव निअकज्ज / नियकज्जे संवित्ते, विरला नेहं पवटुंति // 799 // . कुणउ तवं पालउ संजमं, पढउ सयलसत्थाइ / जाव न झायइ अप्पा, ताव न मुक्खो जिणो भणइ // 800 // जा दवे होइ मई, अहवा तरुणीसु रुववंतीसु / सा जइ जिणवरधम्मे, करयलमज्झे ठिआ सिद्धी // 801 // थोवंवि अणुट्ठाणं, भावविसुद्धं हणेइ कम्ममलं / . लहुओ वि सहस्सकिरणो, तिमिरनिअम्बं पणासेइ // 802 //

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