Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
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________________ 82 संगमय 1 कालसूरी 2 कविला 3 अंगार 4 पालया 5 दोवि 6 / नो जीव 7 गुट्ठामाहिल 8 उदायिनिव मारय 9 अभव्वा // 856 // सुत्ते 1 अत्थे 2 भोयण 3 काले 4 आवस्सए य 5 सज्झाए 6 / संथारे 7 चेव तहा, सत्तविहा मंडली जइणो // 857 // सामग्गीअभावाओ, ववहारिअरासिअप्पवेसाओ / भव्वावि ते अणंता, जे सिद्धि सुहं न पावंति // 858 // चक्कित्तं पंचुत्तरविमाणवासीदेवत्तं / / लोगतिअदेवत्त, अभव्वजीवेहि नो पत्तं // 859 // निअदव्वमपुब्बजिणिंदभवणजिणबिंबपइट्ठासु / विअरइ पसत्थ-पोत्थअ, सुतित्थतित्थवरपूआसु // 860 // जिणाणाए कुणंताणं, नूणं निव्वाणकारणं / सुंदरंपि सबुद्धिए, सव्वं भवनिबंधणं // 861 // वेयण वेयावच्चे, इरियट्ठाए य संजमट्ठाएं / तह पाणवत्तिआए, छटुं पुण धम्मचिंताए // 862 // नत्थि छुहाए सरिसा वेयणा, भुंजेज्ज तप्पसमणट्ठा / छुहिओ वेयावच्चं, न तरइ काउं तओ भुंजे // 863 // अट्टेण तिरिक्खगइ, रुद्दज्झाणेण गम्मए नरयं / धम्मेण देवलोए, सिद्धिगई सुक्कझाणेणं // 864 // कामाणुरंजियं अटुं, रोइं हिंसाणुरंजिअं / धम्माणुरंजियं धम्मं, सुक्कज़्झाणं निरंजणं // 865 // वय समण धम्म संजम, वेयावच्चं च बंभगुत्तीओ / नाणाइ तिरं तव, कोहनिग्गहाई चरणमेअं // 866 //

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