Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 80
________________ 73 अन्नन्नदेसजाया, अन्नन्नकुलेसु वढिअसरीरा / जिणसासणं पवन्ना, सव्वे ते बंधवा भणिआ // 759 // जं तवसंजमहीणं, नियमविहणं च बंभपरिहीणं / तं सीलसमं पतं, बुहृतं बोलए अन्नं // 760 // आजम्मेणं तु जं पावं, बंधिज्जा मच्छबंधओ / वयभंग काउमाणो, तं चेव य पुणो अट्ठगुणं // 761 / / ___ इइ सिरिदेसणासयगं सम्मत्तं / पूआजिणिंदे सुरुई वएसु, जत्तो अ सामाइअपोसहेसु / दाणं सुपत्ते सयणं सुतित्थे, सुसाहुसेवा सिवलोअमग्गो / / 762 // जिणाणं पूअजत्ताए, साहणं पज्जुवासणे / आवस्सयंमि सज्झाए, उज्जमेह दिणे दिणे // 763 // नाणं नियमग्गहणं, नवकारो नयर्सई अणीहा च / पंचनयभूसिआणं, न दुल्लहा 'सुग्गई होइ // 764 / / आवस्सयमुभयकालं, ओसहमिव जे कुणंति उज्जुत्ता / जिणविज्जकहिअविहिणा, अकम्मरोगा य ते हुँति / / 765 / / सुलहो विमाणवासो, एगच्छत्ता य मेइणी सुलहा / दुलहा पुण जीवाणं, जिणिंदवरसासणे बोही // 766 // उइअंमि सहस्सकरे, सलोयणो पिच्छइ सयललोओ / जं न उलूओ पिच्छइ, सहस्सकिरणस्स को दोसो ? // 767 // सव्वनईणं जा हुज्ज वालुआ, सव्वउदहिण जं सलिलं / इत्तोवि अणंतगुणो, अत्थी एगस्स सुत्तस्स // 768 / /

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