Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 77
________________ 70 . कोहणसीला अन्ने, सप्पा इस मिसिमिसिंति पडिणीया / ताणं कत्तो बोही, अबोहिलाभेण पडिबद्धा // 725 // अन्नेवि मत्तबाला, अन्ने पंचंगविसयतल्लिच्छा / अन्ने कसायपरिगया, अन्ने निदालसोवहया // 726 // एगो भत्तकहाए, चोरकहाए अ जणवयकहाए / अच्छंति विगहबद्धा, अइदुलहं बोहि तेसिपि // 727 // . किवणतणेण अन्ने, भएण नाणाविहेण पडिबद्धा / न लहंति बोहिलाभ, सोगेण य सल्लिआ अन्ने // 728 // अन्नाणोवह अन्ने, सेअं किसणंपिं जाण समसरिसं / ते वि न लहंति बोहिं, संसारबइल्लं ते दुपया // 729 // अन्नेवि कुऊहलिणो, दिसिदेसुज्जाणपव्वयवणेसु / पिच्छणय गीअवाइअ, अइहासरसिक्कपडिबद्धा // 730 // बहुमंततंतचवणा, कुगहकुहेडयकुदंसणविलग्गा / कुमइ कुदिटूठ तेहिं अ, बोहिं न लहंति इअमाई // 731 // जह कप्परुक्खतरूणं सरिसनामेण अंतरं गुरुअं / तह जणजिणधम्मसुवि, समनामे अंतरं गुरुअं // 732 // जह घरधरदृचिंता-मणीण पाहाण सरिसनामेहिं / कंचणलुट्ठाणं तह, जाणिज्जा अंतरं गुरुअं // 733 // एवं च नामसामण्णयाइ विउसो न लग्गए धम्मे / सुपरिविखउत्ति काउ, नाउ परमत्थओ लेई // 734 // जो रीरीतिकाऊण, कंचणं लेइ वन्ननडिअंगं / सो विवयंमि घट्ठो, बहुझूरइ अणायपरमत्थो // 735 / /

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